Emotional intelligence page 1

 Aristotle's Challenge

Anyone can become angry —that is easy. But to be angry with the

right person, to the right degree, at the right time, for the right

purpose, and in the right way —this is not easy.

ARISTOTLE, The Nicomachean Ethics

It was an unbearably steamy August afternoon in New York City, the kind

of sweaty day that makes people sullen with discomfort. I was heading back

to a hotel, and as I stepped onto a bus up Madison Avenue I was startled by

the driver, a middle-aged black man with an enthusiastic smile, who

welcomed me with a friendly, "Hi! How you doing?" as I got on, a greeting

he proffered to everyone else who entered as the bus wormed through the

thick midtown traffic. Each passenger was as startled as I, and, locked into

the morose mood of the day, few returned his greeting.

But as the bus crawled uptown through the gridlock, a slow, rather

magical transformation occurred. The driver gave a running monologue for

our benefit, a lively commentary on the passing scene around us: there was

a terrific sale at that store, a wonderful exhibit at this museum, did you hear

about the new movie that just opened at that cinema down the block? His

delight in the rich possibilities the city offered was infectious. By the time

people got off the bus, each in turn had shaken off the sullen shell they had

entered with, and when the driver shouted out a "So long, have a great day!"

each gave a smiling response.

The memory of that encounter has stayed with me for close to twenty

years. When I rode that Madison Avenue bus, I had just finished my own

doctorate in psychology—but there was scant attention paid in the

psychology of the day to just how such a transformation could happen.

Psychological science knew little or nothing of the mechanics of emotion.

And yet, imagining the spreading virus of good feeling that must have

rippled through the city, starting from passengers on his bus, I saw that this

bus driver was an urban peacemaker of sorts, wizardlike in his power to transmute the sullen irritability that seethed in his passengers, to soften and

open their hearts a bit.

In stark contrast, some items from this week's paper:

• At a local school, a nine-year-old goes on a rampage, pouring paint over

school desks, computers, and printers, and vandalizing a car in the school

parking lot. The reason: some third-grade classmates called him a "baby"

and he wanted to impress them.

• Eight youngsters are wounded when an inadvertent bump in a crowd of

teenagers milling outside a Manhattan rap club leads to a shoving match,

which ends when one of those affronted starts shooting a .38 caliber

automatic handgun into the crowd. The report notes that such shootings

over seemingly minor slights, which are perceived as acts of disrespect,

have become increasingly common around the country in recent years.

• For murder victims under twelve, says a report, 57 percent of the

murderers are their parents or stepparents. In almost half the cases, the

parents say they were "merely trying to discipline the child." The fatal

beatings were prompted by "infractions" such as the child blocking the TV,

crying, or soiling diapers.

• A German youth is on trial for murdering five Turkish women and girls

in a fire he set while they slept. Part of a neo-Nazi group, he tells of failing

to hold jobs, of drinking, of blaming his hard luck on foreigners. In a barely

audible voice, he pleads, "I can't stop being sorry for what we've done, and I

am infinitely ashamed."

Each day's news comes to us rife with such reports of the disintegration

of civility and safety, an onslaught of mean-spirited impulse running amok.

But the news simply reflects back to us on a larger scale a creeping sense of

emotions out of control in our own lives and in those of the people around

us. No one is insulated from this erratic tide of outburst and regret; it

reaches into all of our lives in one way or another.

The last decade has seen a steady drumroll of reports like these,

portraying an uptick in emotional ineptitude, desperation, and recklessness

in our families, our communities, and our collective lives. These years have

chronicled surging rage and despair, whether in the quiet loneliness of

latchkey kids left with a TV for a babysitter, or in the pain of children abandoned, neglected, or abused, or in the ugly intimacy of marital

violence. A spreading emotional malaise can be read in numbers showing a

jump in depression around the world, and in the reminders of a surging tide

of aggression—teens with guns in schools, freeway mishaps ending in

shootings, disgruntled ex-employees massacring former fellow workers.

Emotional abuse, drive-by shooting, and post-traumatic stress all entered

the common lexicon over the last decade, as the slogan of the hour shifted

from the cheery "Have a nice day" to the testiness of "Make my day."

This book is a guide to making sense of the senselessness. As a

psychologist, and for the last decade as a journalist for The New York Times,

I have been tracking the progress of our scientific understanding of the

realm of the irrational. From that perch I have been struck by two opposing

trends, one portraying a growing calamity in our shared emotional life, the

other offering some hopeful remedies.

आज की कहानी

साक्षात्कार


    बड़ी दौड़ धूप के बाद ,मैं  आज एक ऑफिस में  पहुंचा। आज मेरा पहला इंटरव्यू था ।घर से निकलते हुए मैं  सोच रहा था,काश ! इंटरव्यू में आज कामयाब हो गया , तो अपने

 पुश्तैनी मकान को अलविदा कहकर यहीं शहर में सेटल हो जाऊंगा, मम्मी पापा की रोज़ की चिक चिक,मग़जमारी से छुटकारा मिल जायेगा ।


            सुबह उठने से लेकर रात को सोने तक होने वाली चिक चिक  से परेशान हो गया हूँ ।


जब सो कर उठो , तो पहले बिस्तर ठीक करो , फिर बाथरूम जाओ,बाथरूम से निकलो तो फरमान जारी होता है,,,नल बंद कर दिया?

तौलिया सही जगह रखा या यूँ ही फेंक दिया?

नाश्ता करके घर से निकलो तो डांट पडती है 

पंखा बंद किया या चल रहा है?

क्या - क्या सुनें यार ,नौकरी मिले तो घर छोड़ दूंगा..


वहाँ उस ऑफिस में बहुत सारे उम्मीदवार बैठे थे , बॉस का इंतज़ार कर रहे थे  ।


दस बज गए  ।


 मैने देखा वहाँ आफिस में बरामदे की बत्ती अभी तक जल रही है , 

माँ याद आ गई , तो मैने बत्ती बुझा दी ।


ऑफिस में रखे वाटर कूलर से पानी टपक रहा था, 

पापा की डांट याद आ गयी , तो पानी बन्द कर दिया ।


बोर्ड पर लिखा था , इंटरव्यू दूसरी मंज़िल पर होगा ।


सीढ़ी की लाइट भी जल रही थी, बंद करके आगे बढ़ा , 

तो एक कुर्सी रास्ते में थी , उसे हटाकर ऊपर गया ।


 देखा पहले से मौजूद उम्मीदवार जाते और फ़ौरन बाहर आते ,

 पता किया तो मालूम हुआ बॉस

 फाइल लेकर कुछ पूछते नहीं ,

 वापस भेज देते हैं ।


 नंबर आने पर मैने फाइल

 मैनेजर की तरफ बढ़ा दी ।

 कागज़ात पर नज़र दौडाने के बाद उन्होंने कहा

 "कब ज्वाइन कर रहे हो?"


 उनके सवाल से मुझे यूँ लगा जैसे

 मज़ाक़ हो , 

वो मेरा चेहरा देखकर कहने लगे , ये मज़ाक़ नहीं हक़ीक़त है ।


आज के इंटरव्यू में किसी से कुछ पूछा ही नहीं , 

सिर्फ CCTV में सबका बर्ताव देखा , 

सब आये लेकिन किसी ने नल या लाइट बंद नहीं किया ।


*धन्य हैं तुम्हारे माँ बाप , जिन्होंने तुम्हारी इतनी अच्छी परवरिश की और अच्छे संस्कार दिए ।*


*जिस इंसान के पास Self discipline नहीं वो चाहे कितना भी होशियार और चालाक हो , मैनेजमेंट और ज़िन्दगी की दौड़ धूप में कामयाब नहीं हो सकता ।*


घर पहुंचकर मम्मी पापा को गले लगाया और उनसे माफ़ी मांगकर उनका शुक्रिया अदा किया ।


अपनी ज़िन्दगी की आजमाइश में उनकी छोटी छोटी बातों पर रोकने और टोकने से , मुझे जो सबक़ हासिल हुआ , उसके मुक़ाबले , मेरे डिग्री की कोई हैसियत नहीं थी और पता चला ज़िन्दगी के मुक़ाबले में सिर्फ पढ़ाई लिखाई ही नहीं , तहज़ीब और संस्कार का भी अपना मक़ाम है...


संसार में जीने के लिए संस्कार  जरूरी है ।

संस्कार के  लिए मां  बाप का सम्मान  जरूरी है ।

जिन्दगी रहे ना रहे , जीवित रहने का स्वाभिमान जरूरी है ।

Getting things done part 5

Doing: Making the Best Action


Choices अपने टास्क को organize करना बहुत इम्पोर्टेन्ट होता है. ये आपको अपने अधूरे काम के बारे में चिंता किए बिना शांति से बैठकर काम पर फोकस करने में मदद करती है. अधूरे काम हमेशा चिंता और ध्यान भटकाने का कारण बनते हैं और ये तब तक आपको परेशान करते रहेंगे जब तक आपके पास एक ऐसा सिस्टम नहीं होता जहां आप उसे पूरा करने के बारे में प्लान नहीं करते. जब आप अपना सारा काम एक जगह इकट्ठा कर लेते हैं तो आपको उन्हें अलग-अलग केटेगरी में डिवाइड करना है. इस केटेगरी में आपके प्रोजेक्ट, कैलेंडर इवेंट, अगले एक्शन की लिस्ट, वेटिंग लिस्ट और someday लिस्ट यानी किसी और दिन करने वाली लिस्ट शामिल हैं.

आपके प्रोजेक्ट लिस्ट में वो सभी टास्क शामिल होते हैं जिन्हें पूरा करने के लिए एक से ज़्यादा स्टेप्स की ज़रुरत होती है.आपके कैलेंडर में वो सभी टास्क लिखे जाने चाहिए जिन्हें आपको एक ख़ास तारीख को ही परा करना है. आपकी एक्शन लिस्ट में उस काम को लिखा जाएगा जिसके लिए आपको एक्शन लेने की ज़रुरत है. बाकी सभी लिस्ट के लिए आप एक फ़ोल्डर, planner या कंप्यूटर का इस्तेमाल कर सकते हैं.

आप जो भी इस्तेमाल करने का फ़ैसला करते हैं, आपको बस इतना ध्यान रखना होगा कि आपको हर केटेगरी को एक दूसरे से अलग रखना है. इसका मतलब है कि आप एक ही टास्क को दो केटेगरी में नहीं लिख सकते. अगर आपने ऐसा किया तो ये सिर्फ़ आपको कंफ्यूज करेगा और आपको लगेगा कि इस सिस्टम में ही कोई गड़बड़ी है.

एग्जांपल के लिए, एक्शन लिस्ट को लेते हैं. इस लिस्ट में वो सभी काम शामिल होने चाहिए जिन्हें एक बार में ही पूरा करने की ज़रुरत है जैसे घर के काम, फोन कॉल करना, कंप्यूटर पर किए जाने वाले काम वगैरह.

हर काम को केटेगरी में बॉट कर आप समय और मेहनत दोनों को बचाते हैं. एग्ज़ाम्पल के लिए, जब आप उन सभी टास्क को एक फ़ोल्डर में डालते हैं जिनके लिए कंप्यूटर की ज़रुरत है, तो जब भी आपको कंप्यूटर पर काम करने का समय मिले तो आप उस फ़ोल्डर को खोलकर अपना काम तुरंत शुरू कर सकते हैं. आपको अपना सारा काम एक बार में ही मिल जाएगा. इस तरह आप कभी भी किसी भी काम के बारे में भूलेंगे नहीं.

केटेगरी बनाने के बाद भी आप टास्क को छोटे छोटे केटेगरी, जिन्हें sub category कहा जाता है, उसमें बाँट सकते हैं. जैसे अपने कंप्यूटर टास्क के लिए आप ऑनलाइन और ऑनलाइन टेस्ट के दो छोटे केटेगरी बना सकते हैं. ये केटेगरी काम करना बहुत आसान बना देते हैं.

इमेजिन कीजिए कि आप travel कर रहे हैं और उस वक़्त आपके पास इंटरनेट की सुविधा मौजूद नहीं है, तो फ्लाइट में बैठे-बैठे आप अपने ऑनलाइन टास्क को पूरा कर सकते हैं.हर चीज़ को केटेगरी में बांटने से आपको आर्गनाइज्ड होने में मदद मिलेगी, आप कभी भी कोई इम्पोर्टेन्ट काम भूलेंगे नहीं. तब आप स्टेस महसस नहीं करेंगे क्योंकि तब आपकी बिजी लाइफ आपके कंट्रोल में होगी. 

कॉन्क्लूज़न


क्योंकि समय तेज़ी से बदल रहा है इसलिए हमारे जॉब के बारे में भी ठीक से कुछ कहा नहीं जा सकता. आज भी दिन में 24 घंटे का वक़्त ही मिलता है लेकिन काम का लोड इतना बढ़ गया है कि ये वक़्त भी कम पड़ने लगा है. देखिए हम समय को तो नहीं बढ़ा सकते लेकिन स्मार्टली काम कर कम समय में ज़्यादा काम पूरा ज़रूर कर सकते हैं. आजकल जब आप कोई जॉब ज्वाइन करते हैं तो आपसे ये उम्मीद की जाती है कि आपको अपना टारगेट पूरा करना है लेकिन अक्सर ये समझ ही नहीं आता कि आखिर आपकी ज़िम्मेदारियाँ हैं क्या. हर नया दिन पहले दिन से ज़्यादा मुश्किल लगने लगता है. दिन-ब-दिन हमारे काम की लिस्ट लंबी होती जा रही है और हमारा दिन इसी उलझन में बीत जाता है कि काम को पूरा करें तो कैसे करें.

ये बुक इन सभी प्रोबलम्स के solution के रूप में सामने आई है. अपने organizing मेथड से इसने कई सक्सेसफुल लोगों की जिंदगी को बदला है. इस बुक में आपने सीखा कि जिंदगी में नई ज़िम्मेदारियों का सामना कैसे करें. आपने समझा कि अपने लाइफ में सब कुछ organize कर के आप कम समय में अच्छे से फोकस कर ज़्यादा काम कर सकते हैं.

आपने फिजिकल और मेंटल तरीके से चीज़ों को इकट्ठा करने के बारे में जाना. एक बार जब आपके पास एक ऐसा organizing सिस्टम होता है जिस पर आप भरोसा कर सकते हैं, तो बाकी सब कुछ आसान हो जाता है. तब आप बेफ़िक्र होकर अपने काम पर फोकस कर सकते हैं क्योंकि आप जानते हैं कि आपने हर चीज़ को ठीक से मैनेज कर लिया है. इसलिए चिल करें और अपने हार्ड वर्क से आप जो कुछ अचीव करते हैं उसे खुलकर एन्जॉय करें और याद रखें आपको ज़्यादा देर तक काम नहीं करना है बल्कि स्मार्ट तरीके से कम समय में ज़्यादा काम करना है.

आपको ये बुक कैसी लगी, कमेंट करके जरूर बताएं।
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2015 edition  Getting Things Done 
Updated edition


Getting things done part 4

Getting Started: Setting Up the Time, Space, and Tools


कभी-कभी लाइफ में कुछ सिंपल ट्रिक्स अपना लेने से लाइफ हमेशा के लिए बदल जाती है. ज़्यादातर सक्सेसफुल लोगों ने एक्स्ट्राऑर्डिनरी सक्सेस पाने के लिए कोई ना कोई तरकीब अपनाई है. अपने माइंड को क्लियर कर बेहतर परफॉरमेंस के लिए, आपको अपने लाइफ पर कंट्रोल रखना होगा और इसके लिए आपको सही समय, जगह और टूल्स की ज़रुरत होगी. टाइम से हमारा मतलब है कि आपको कम से कम दो दिन अलग रखने होंगे. इस प्रोसेस को शुरू करने के लिए आप वीकेंड या छुट्टी का दिन चुन सकते हैं. ये प्रोसेस सुनने में आपको लंबा लग सकता है लेकिन इसका रिजल्ट आपको तुरंत मिलेगा. जगह का मतलब है कि आपके पास आपकी एक पर्सनल डेस्क होनी चाहिए जहां आप अपने काम को लिख कर उसे organize कर सकें. यहाँ तक कि अगर आपके ऑफिस में आपका केबिन है तब भी घर पर आपको अपना डेस्क सेट करना होगा. 
टूल्स का मतलब है वो सामान का यूज़ आप अपने आईडिया और विचारों को प्रोसेस करने में और उन्हें सही फ़ोल्डर में organize करने के लिए करते हैं. कंप्यूटर, पेपर ट्रे, स्टेपलर, कैलेंडर, पेंसिल ये सब टूल्स हैं जिनकी आपको ज़रुरत पड़ेगी. इनमें से कौन कौन सा टूल आपको रखना है वो आपकी मर्जी है. आप अपनी पसंद से अपना डेस्क सजा सकते हैं.

बस इतना याद रखें कि हम एक ऐसी जगह बनाने की कोशिश कर रहे हैं जहां आप अपने मन को हर तरह के भटकाव से ख़ाली रख सकें. इसलिए अपने गोल तक पहुँचने के लिए सही समय और सही जगह का होना बहुत ज़रूरी है.

आइए इन टूल्स के बारे में समझते हैं. किसी भी आर्गेनाईजेशनल सिस्टम के लिए एक कैलेंडर को रेडी होना बहुत ज़रूरी होता है. इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि कौन सा कैलेंडर लेना चाहिए सिर्फ़ आपको उसे ठीक से यूज़ करना आना चाहिए. अपने कैलेंडर का इस्तेमाल उन अधूरे टास्क के बारे में लिखने के लिए ना करें जिन्हें आप कभी दोबारा चेक नहीं करने वाले हैं. इससे आपको सिर्फ़ यही लगेगा कि ये सिस्टम काम नहीं करता है और ये भी हो सकता है कि आप इस प्रोसेस को फॉलो करना ही बंद कर दें.

कैलेंडर का काम होता है किसी ख़ास काम के बारे में याद दिलाना, कोई ऐसा काम जिसे किसी ख़ास तारीख़ को करना बहुत ज़रूरी है जैसे कि डॉक्टर का अपॉइंटमेंट या कोई सेमिनार अटेंड करना. हो सकता है कि आप ख़ुद को आर्गनाइज्ड रखने के लिए किसी सॉफ्टवेयर या फ़ाइल की हार्ड कॉपी रखना पसंद करते हों, तो इसमें कोई हर्ज नहीं है, सिर्फ इतना ध्यान रखें कि कोई भी टूल अकेला काम नहीं कर सकता. एक स्ट्रोंग organizing सिस्टम बनाने के लिए जो सच में काम करता हो, आपको कई टूल्स को मिलाकर अलग-अलग ट्रिक्स को यूज़ करना होगा.

Collection: Corralling Your "Stuff"

अब आपके पास अपना डेस्क है जिस पर वो सभी टूल्स मौजूद हैं जिनकी आपको organizing प्रोसेस में ज़रुरत पड़ सकती है.

अब आप अपना काम शुरू कर सकते हैं. सबसे पहले आपको वो सारा सामान इकट्ठा

करना होगा जिसे organize करने की ज़रुरत है. आपको कितनी चीज़ों को छांटना है उसके हिसाब से इस प्रोसेस में 2 से 6 घंटे लग सकते हैं. आपको अपने घर के हर रूम और drawer में चेक करना होगा. पहले, आपको फिजिकली सारा सामान इकट्ठा करना है. कोई भी ऐसी चीज़ जिसकी कोई परमानेंट जगह नहीं है और वो इधर उधर बिखरी हुई है, उसे आपको ठीक से देखना और प्रोसेस करना होगा इसलिए इसे अपने "in-basket" में डालें.

दूसरा, आपको मेंटली सारी चीजें इकट्ठा करनी हैं. आपको पेपर पर अपने सारे आईडिया और थॉट लिखने होंगे. अपने हर आईडिया को लिखकर in-basket में रखना सबसे अच्छा तरीका होता है. आपको ऐसे कई आईडिया और प्रोजेक्ट मिलेंगे जिन्हें आप करना तो चाहते थे लेकिन उन्हें करने का कभी समय ही नहीं मिला.
हम सभी अक्सर अपने drawer में कई चीजें छोड़ देते हैं और फ़िर उन्हें कभी नहीं उठाते. अक्सर drawer में फ़ाइल, बिज़नेस कार्ड, पेन वगैरह होते हैं इसलिए आपको हर आइटम को ठीक से चेक करना होगा. हर बिजनेस कार्ड और नोट को चेक करें. जब आपको लगे कि कोई चीज़ काम की है तो उसे in-basket में रख दें. मेंटली चीज़ों को इकट्ठा करना कोई पर्सनल या प्रोफेशनल आईडिया हो सकता है. हो सकता है कि आपको अपना garage साफ़ करना हो, किसी को फ़ोन करना हो या अपने ईमेल में बेकार की चीजें डिलीट करनी हो. सब कुछ इकट्ठा करने के बाद, सामान का एक बड़ा ढेर लगा होगा. जब आप सारा सामान देखते हैं तो आपको क्लियर हो जाता है कि आपको क्या करना है और सब organize करने के बाद सब कुछ कैसा होगा. अब आप ख़ुद सोचिए कि अपने सभी अधूरे काम को मैनेज करने के बाद आप जो काम कर रहे हैं उस पर कितने अच्छे से फोकस कर पाएंगे. एक बार जब आप उन चीजों को इकट्ठा कर लेंगे जो आपका ध्यान भटका रहे थे तो आपको एक अलग सी पॉवर का एहसास होगा. तब आपको फील होगा कि आपकी लाइफ आपके कंट्रोल में है, आप लाइफ के वश में नहीं हैं.

इसलिए अगर सामान इकट्ठा करने के प्रोसेस में कुछ ज़्यादा समय लग जाए तो निराश ना हों क्योंकि काम पूरा होने के बाद आपकी मेहनत ज़रूर रंग लाएगी.

Processing: Getting "In" to Empty

पिछले चैप्टर में आपने सीखा कि कैसे अपने सभी अधूरे काम को कैसे इकट्ठा किया जाए जो आपका ध्यान भटकाते हैं. सामान इकट्ठा करते समय आपको उन चीज़ों को हटा देना चाहिए जिनकी आपको ज़रुरत नहीं है. अब उस काम को करने का समय है जिसे करने में आपको सिर्फ़ दो मिनट लगेंगे.

अगर आपके सामने कोई ऐसा काम आता है जिसे आप नहीं कर सकते या किसी ऐसे शख्स से करवाना है जो आपसे बेहतर उसे कर सके तो वो काम उन्हें सौंप दें. इसे करने के बाद, अब आपके पास वो काम बचेंगे जिन्हें करने में आपको दो मिनट से ज़्यादा समय लगेगा. ऐसे काम को आप सिंपल टास्क और बड़े प्रोजेक्ट जैसी केटेगरी में डिवाइड कर सकते हैं. आमतौर पर प्रोजेक्ट को पूरा करने के लिए ज़्यादा प्लानिंग की ज़रुरत होती है. जब आप अपने काम को डिवाइड कर रहे हों तो आपको उस काम को सबसे पहले करना

चाहिए जो सबसे ज़्यादा इम्पोर्टेन्ट है, उसके बाद आप बाकी के काम कर सकते हैं. याद रखें कि आपको एक समय में एक ही काम को पूरा करना है और किसी भी काम को अधूरा नहीं छोड़ना है. अगर आप कल पर अपने काम को टालेंगे तो आपके माइंड में फ़िर वही चीजें चलने लगेंगी जो आपका ध्यान भटकाती हैं और आपको अपने गोल से दूर ले जाती है. ये टास्क अभी आपको आसान और क्लियर लग रहे होंगे लेकिन अगर आपने उन्हें प्रोसेस नहीं किया तो रूम से बाहर जाते ही आप उनके बारे में भूल जाएँगे. इसलिए अपने गोल को हासिल करने के लिए, आपको कौन सा काम करना है उसके बारे में ठीक से लिखें. आइए कुछ एग्ज़ाम्पल से समझते हैं. मान लीजिए कि आपको अपने लिविंग रूम की सफाई करनी है.

तो इस टास्क के लिए आपको लिखना चाहिए "मुझे कार्पेट साफ़ करना है, सोफ़े से धूल झाड़नी है और टेबल को थोड़ा लेफ्ट में सरकाकर वहाँ भी सफाई करनी है.... " ईमेल लिस्ट को organize करना है इसके लिए आप लिख सकते हैं "मुझे इम्पोर्टेन्ट ईमेल के जवाब देने हैं, जिसकी मुझे ज़रुरत नहीं वो सभी चीजें डिलीट करनी हैं और ईमेल की अलग-अलग केटेगरी भी बनानी है....."

अलमारी को साफ़ करना है

अलमारी की सफाई एक ऐसा काम है जिसे कोई भी करना पसंद नहीं करता. लेकिन जब आप एक क्लियर गोल सेट करते हैं तो वो काम करने के लिए आप सच में मोटीवेट हो जाते हैं. यहाँ आप लिख सकते हैं "मुझे उन कपड़ों को हटाना है जिनकी मुझे ज़रुरत नहीं है....." प्रेजेंटेशन के लिए तैयार करनी है

अगर आपको लगता है कि किसी काम को पूरा करने के लिए एक से ज़्यादा स्टेप्स की ज़रुरत है तो उसे प्रोजेक्ट की केटेगरी में डाल दें. इसके लिए बाद में और प्लानिंग की ज़रुरत होगी. एग्ज़ाम्पल के लिए, प्रेजेंटेशन की तैयारी करना भी किसी प्रोजेक्ट पर काम करने से कम नहीं है. प्रेजेंटेशन की प्लानिंग करते समय आपको एक टॉपिक चुनना होगा, फ़िर उसके बारे में कोई बुक या जर्नल पढ़नी होगी, उसके बाद आपको अपना ड्राफ्ट लिखना होगा, फ़िर बारी आती है स्लाइड शो तैयार करने की और अंत में लोगों के सामने बोलने की प्रैक्टिस करनी होगी.

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Getting things done part 3

 Getting Projects Creatively Under Way: The Five Phases of Project Planning 


कभी-कभी जब हम अपने "टू-डू-लिस्ट" को अपडेट नहीं करते, तो कई ऐसे आईडिया मिस कर देते हैं जो हमें बड़ी सक्सेस दिला सकते थे. इस प्रॉब्लम से बचने के लिए, हमें आगे का प्लान बनाने की ज़रुरत है.

प्लानिंग भी कई तरह की होती है. जहां आप हर टास्क के गोल और उस गोल को हासिल करने के लिए ज़रूरी स्टेप और एक्शन को क्लियर तरीके से सेट करते हैं, वहाँ आप हॉरिजॉन्टल (Horizontal) प्लानिंग को यूज़ कर सकते हैं. आमतौर पर इस तरह की प्लानिंग के लिए आपको ऐसे रिमाइंडर सेट करने होंगे जिन्हें आप आसानी से देख सकें ताकि आप उस टास्क को भूल ना जाएं और उसकी प्रोग्रेस को मॉनिटर कर सकें.

दूसरी तरह की प्लानिंग है वर्टीकल (Vertical) प्लानिंग. इसमें डिटेल पर फोकस करने की और हर स्टेप को पूरा करने के लिए solution ढूंढने की जरुरत होती है. इसका मतलब ये नहीं है कि इसके लिए आपको किसी स्पेशल सॉफ्टवेयर को यूज़ करना होगा. आप इसे पेपर पर लिख कर भी रिकॉर्ड बना सकते हैं.

हालांकि, प्लानिंग का सबसे इफेक्टिव तरीका होता है नेचुरल प्लानिंग. आपका ब्रेन इस दुनिया का सबसे बेहतरीन planner है. आपका ब्रेन ऐसी -ऐसी चीजें कर सकता है जिसकी बराबरी दुनिया का कोई सॉफ्टवेयर या नोटबुक नहीं कर सकता.

नेचुरल प्लानिंग में पांच स्टेप होते हैं. सबसे पहले, आपको अपने गोल को अचीव करने के लिए एक प्लान बनाना होगा. दूसरा, आपको ठीक से पता होना चाहिए कि अंत में उसका रिजल्ट क्या हो सकता है. तीसरा, आपको बहुत दिमाग और क्रिएटिविटी लगाकर अलग-अलग आईडिया के बारे में सोचना होगा. चौथा, आपको अपने आईडिया को organize करना होगा. अंत में, आपको ये पहचानना होगा कि अगला एक्शन क्या होना चाहिए.

एग्ज़ाम्पल के लिए आइए आपका डिनर प्लान करते हैं. जब आप रोज़मर्रा के काम की प्लानिंग करते हैं, तो आप automatically नेचुरल प्लानिंग यूज़ करते हैं. पहले आप ये देखते हैं कि इस डिनर का मकसद क्या है यानी क्या आप दोस्तों के साथ बाहर पार्टी करने जा रहे हैं? या ये कोई स्पेशल डेट या बिज़नेस डिनर है? पर्पस के हिसाब से आपका ब्रेन उस डिनर के लिए हदें सेट करना शुरू कर देता है जैसे कितने पैसे खर्च करने हैं, कौन सा खाना सर्व होना चाहिए, आपके कपड़े कैसे होने चाहिए वगैरह वगैरह.

दूसरा, जब आपका पर्पस क्लियर हो जाता है तो आप उसके रिजल्ट के बारे में सोचने लगते हैं जैसे कौन सा कैफ़े या फूड जॉइंट में जाना चाहिए, खाना किस तरह का होना चाहिए. आपके माइंड में उस जगह की इमेज बनने लगती है जहां आप जाने वाले हैं. आप ख़ुद को खिड़की के पास बैठा हुआ देखते हैं. यहाँ तक कि आप खाने की खुशबू और उसके taste के बारे में भी सोचने लगते हैं.

तीसरे स्टेप में आपके ब्रेन में अपने आप कई तरह के थॉट आने लगते हैं. आप उस टाइम के बारे में सोचने लगते हैं जब आपको वहाँ पहुंचना चाहिए. आपके मन में कई सवाल भी आते हैं जैसे क्या वो जगह खुली होगी? मुझे किस तरह के कपड़े पहनने चाहिए? क्या मुझे टाइम पर कैब मिल जाएगी?

इस स्टेप के पूरा होने के बाद आप सब कुछ organize करना शुरू करते हैं. आप डिसाइड करते हैं कि ठीक आठ बजे आपको घर से निकलना है. अपने सिलेक्ट किए हुए रेस्टोरेंट में समय से पहुंचकर अपनी बुक की हुई टेबल पर बैठना है. फ़िर आप सोचते हैं कि आप अपनी पसंदीदा ब्लैक ड्रेस पहने रेस्टोरेंट की टेबल पर बैठे होंगे. यानी कि आपके माइंड में उस डिनर से रिलेटेड एक पूरी फिल्म चलने लगती है.

अब सब प्लानिंग ख़त्म कर आप पहला एक्शन लेते हैं जो है अपने दोस्त को फ़ोन करना और फ़िर रेस्टोरेंट को कॉल कर अपनी सीट बुक करना.क्या आपने कभी सोचा था कि आपका ब्रेन पूरे दिन इस तरह की प्लानिंग में लगा रहता है? तो क्यों ना अपने काम को पूरा करने के लिए इस तरह की नेचुरल प्लानिंग को यूज़ किया जाए. ये किसी भी फ्लोचार्ट या सॉफ्टवेयर को यूज़ करने से कम स्ट्रेसफुल होता है.

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Getting things done part 2

 A New Practice for a New Reality


क्या आपको लगता है कि काम की एक लंबी लिस्ट को कंट्रोल में रखते हुए भी दिन के अंत तक कोई आदमी रिलैक्स्ड फील कर सकता है? हाँ, ऐसा बिलकुल हो सकता है और ये बुक आपको दिखाएगी कैसे.

आज हमें एक ऐसे सिस्टम की ज़रुरत है जो हमें अपना काम भी करने दे और रिलैक्स्ड भी बनाए रखे. आज के इस भागते हुए दौर में जॉब शब्द को ठीक से समझा पाना मुश्किल हो गया है. आए दिन हमारी जॉब बदलती रहती है और हर रोज़ हम पर नई ज़िम्मेदारियाँ बढ़ती ही जा रही हैं.

पुराने समय में, एक एम्प्लोई को उसके गोल और ज़िम्मेदारियों के बारे में ठीक से बता दिया जाता था. लेकिन आज हमें खुद सोचना समझना पड़ता है कि दिन के ख़त्म होते-होते हमें काम कैसे पूरा करना है. इस वजह से हर आदमी पर प्रेशर बढ़ने लगा है.

इस बदलाव के लिए पहले आपको अपनी कुछ आदतों को बदलना होगा. सबसे पहले, आपको इस बारे में क्लियर होना होगा कि आप क्या करना चाहते हैं. अगर आपके पास कोई आईडिया है तो उसे क्लियर तरीके से लिखें और उसे शुरू करने के लिए एक डेट सेट करें. अगर आप ऐसा नहीं करेंगे तो आपका मन बेचैन रहेगा, भटकता रहेगा. आप हर वक्त अपने हर काम के बारे में सोचते रहेंगे और जो काम आप अभी कर रहे हैं उस पर फोकस नहीं कर पाएँगे.

दूसरा, आप जो भी काम कर रहे हैं उस पर 100% फोकस करने की कोशिश करें. अपने काम को तेज़ी से पूरा करने के लिए आपका फोकल लेज़र की तरह सिर्फ होना चाहिए. जब आपके माइंड में एक क्लियर पिक्चर होता है और आप एक ऐसे माहौल में काम करते हैं जहां आपका ध्यान नहीं भटकता तो आप कंट्रोल में रहेंगे और स्ट्रेस महसूस नहीं करेंगे.

एग्ज़ाम्पल के लिए, मुझे आपसे एक सवाल पूछना है, पिछले को सुनते हुए क्या आपका ध्यान भटका? अगर हाँ, तो यकीनन कोई ऐसा काम बाकी है जिसे आप करना चाहते हैं लेकिन उसे अपने दिमाग से निकाल नहीं पाए.

जब आप कोई काम करने का फ़ैसला करते हैं तो आपका ब्रेन आपको तब तक उस काम की याद दिलाता रहता है जब तक आप उसे पूरा नहीं कर लेते. तो ज़रा सोचिए कि अगर 10 काम अधूरे पड़े हैं तो वो आपको कितना स्ट्रेस देता है? और इसमें कोई डाउट नहीं है कि ये टेंशन आपको किसी भी काम में concentrate नहीं करने देगा. इसका एक ही उपाय है, आपके दिमाग में आने वाली हर थॉट को लिखकर एक लिस्ट बनाएं. अपने काम या टास्क के बारे में लिखें और उसके नीचे उसकी डिटेल लिखें. आपको इस टास्क के लिए एक क्लियर डेडलाइन भी सेट करनी होगी ताकि आपका ब्रेन उसके बारे में चिंता करना बंद कर सके.

इसका लॉजिक बहुत सिंपल सा है, अगर आप कोई काम करना चाहते हैं और उसके लिए कोई डेडलाइन सेट नहीं करते तो आपका ब्रेन यही सोचता रहेगा कि अभी तो वो काम अधूरा है. इसलिए जब आप किसी दूसरे काम में बिजी होते हैं तो आपका ब्रेन आपना ध्यान उस काम की ओर खींचने लगता है जो उसे लगता है कि ज़्यादा इम्पोर्टेन्ट है.

एक लिस्ट बनाने से आपका ब्रेन शांत हो जाएगा. उसे एक मैसेज मिल जाता है कि उस काम को करने के लिए आपने एक डेट फ़िक्स कर दी है तो वो निश्चिंत होकर दूसरे काम पर फोकस करने लगता है. हर हफ़्ते के अंत में इस लिस्ट को चेक करें और अगर उसमें कुछ बदलने की ज़रुरत है तो बदलकर उसे अपडेट करें.

काम करने वाली इस लिस्ट को "टू-डू-लिस्ट" कहा जाता है. जब तक आप अपने काम की एक क्लियर लिस्ट नहीं बनाते तब तक आपको किसी भी काम पर फोकस करना बेहद मुश्किल लगेगा. याद रखें, स्ट्रेस के बिना, कम समय में तेजी से काम पूरा करने का एक ही सीक्रेट है, अपना पूरा फोकस काम पर बनाए रखना.

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Getting things done

अगर आप अपने कामों को लेकर परेशान हो जाते हैं तो ये बुक आपके लिए ही है।

अगर आपने जन्म लिया है तो आप जितना संभाल सकते हैं आपको उससे ज़्यादा ज़िम्मेदारियाँ संभालनी होंगी. आप अपने दिन की शुरुआत एक लंबी "To-Do-List" कैसे करते हैं जिसे पूरा करने के लिए आप स्ट्रगल करते रहते हैं और इस वजह स्ट्रेस महसूस करते हैं कि आपने अपनी लाइफ का कंट्रोल ही खो दिया है. तो चिंता मत कीजिए क्योंकि हम आपके लिए एक बेहतरीन solution लेकर आए हैं. ये बुक आपको सिखाएगी कि अपनी लाइफ का कंट्रोल वापस कैसे हासिल करना है और कम समय में ज़्यादा काम कैसे पूरा करना है. यह समरी किसे पढ़नी चाहिए?

:- यंग प्रोफेशनल्स

:- हार्ड वर्क करने वाले लोग जो कम समय में ज़्यादा काम जो भी ज़्यादा आर्गनाइज्ड होना चाहते हैं करना चाहते हैं

ऑथर के बारे में डेविड ऐलन टाइम मैनेजमेंट कंसलटेंट हैं. उन्होंने "Getting Things Done" नाम की टाइम मैनेजमेंट मेथड बनाई थी जिसने उन्हें प्रसिद्धि दिलाई. इस मेथड ने दुनिया भर में लाखों लोगों के जीवन को बदल दिया है. डेविड अपने कोचिंग फर्म के सीईओ हैं, जो कंपनियों को अपने एम्प्लाइज के बीच प्रोडक्टिविटी और फोकस करने के माइंडसेट को बढ़ावा देने में मदद करती है.

इंट्रोडक्शन

क्या आपके पास करने के लिए बहुत सारा काम है लेकिन उसे पूरा करने के लिए टाइम ही

कम पड़ जाता है? क्या आप काम से ब्रेक लेना चाहते हैं लेकिन ज़िम्मेदारियों के कारण आप काम में एक भी दिन मिस नहीं कर सकते? क्या आप फंसा हुआ महसूस करते हैं और एक लंबा ब्रेक लेना चाहते हैं? अगर हाँ, तो आपने इस प्रॉब्लम को सोल्व करने के लिए बिलकुल परफेक्ट बुक चुना है. इस बुक ने लाखों लोगों की जिंदगी को बदल दिया है. आज हम इतने ज़्यादा स्ट्रेस में जी रहे हैं कि हर कोई कम से कम समय में अपना काम पूरा करने के रास्ते खोजने में लगा हुआ है. इस बुक में ऐसा मेथड बताया गया है जो इन सभी problems को सोल्व करने की ताकत रखता है. इस बुक में आप ये जानेंगे कि ध्यान भटकने से बचने के लिए आपको आर्गनाइज्ड होना कितना ज़रूरी है. आपको समझ आने लगेगा कि समय की कमी का असली कारण आपके मन में चलने वाले वो अनगिनत विचार हैं जो आपका ध्यान भटका देते हैं जिससे आपका समय पर काम पूरा नहीं कर पाते.

इन सब का कारण फोकस है और अपने काम पर फोकस करने में मदद करने के लिए आपको अपने एनवायरनमेंट यानी माहौल को बदलने की ज़रुरत है. इन चीज़ों के साथ-साथ आप ये भी सीखेंगे कि अपनी लाइफ को organize करने के लिए सही टाइम, जगह और टूल्स को कैसे चुनें, इसकी शुरुआत आपको अपने आस पास के फिजिकल माहौल से करनी होगी और उसके बाद हम अपने मेंटल स्टेट की ओर बढ़ेंगे. जैसा कि आप जानते हैं कि हमारा ब्रेन हमेशा उन आइडिया के बारे में सोचता रहता है जिन्हें आप आज़माना चाहते हैं. जब आपके पास लाइफ में हर आईडिया और काम के लिए एक फाइलिंग सिस्टम होगा तो आपका मन शांत भी रहेगा और फोकस करने के लिए तैयार भी होगा.

ये बुक आपको अपने काम और प्रोजेक्ट को अलग-अलग केटेगरी में डिवाइड करने का तरीका भी सिखाएगी जो आपकी प्रोडक्टिविटी को बढ़ाएंगे. इसलिए अगर आप ज़िम्मेदारियों से भरे एक स्ट्रेस्फुल लाइफ से थक चुके हैं तो आइए हमारे साथ जुड़कर एक ऐसे सफ़र पर चलिए जो आपको सिखाएगी कि अपनी जिंदगी का चार्ज अपने हाथों में कैसे लेते हैं.