चमार कोई नीच जाति नहीँ सनातन धर्म के रक्षक हैँ

#चमार कोई #नीच_जाति नहीँ #सनातन धर्म के रक्षक हैँ जिन्हेँ भी मुगलोँ का जुल्म सहना पडा था। (संत रविदास और धर्म रक्षा।)
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चमार कोई नीच जाति नहीँ सनातन धर्म के रक्षक हैँ जिन्हेँ भी मुगलोँ का जुल्म सहना पडा था। (संत रविदास और धर्म रक्षा।) उस समय संत रविदास जी का चमत्कार बढ़ने लगा था इस्लामिक शासन घबरा गया सिकंदरसाह लोदी ने सदन कसाई को संत रविदास को मुसलमान बनाने के लिए भेजा वह जनता था की यदि रविदास इस्लाम स्वीकार लेते हैं तो भारत में बहुत बड़ी संख्या में इस्लाम मतावलंबी हो जायेगे लेकिन उसकी सोच धरी की धरी रह गयी स्वयं सदन कसाई शास्त्रार्थ में पराजित हो कोई उत्तर न दे सके और उनकी भक्ति से प्रभावित होकर उनका भक्त यानी वैष्णव (हिन्दू) हो गया उसका नाम सदन कसाई से रामदास हो गया, दोनों संत मिलकर हिन्दू धर्म के प्रचार में लग गए जिसके फलस्वरूप सिकंदर लोदी क्रोधित होकर इनके अनुयायियों को चमार यानी चंडाल घोषित कर दिया। ( तब से इस समाज के लोग अपने को चमार कहने लगे) उनसे कारावास में खाल खिचवाने, खाल-चमड़ा पीटने, जुती बनाने इत्यादि काम जबरदस्ती कराया गया उन्हें मुसलमान बनाने के लिए बहुत शारीरिक कष्ट दिए गए लेकिन उन्होंने कहा ''वेद धर्म सबसे बड़ा, अनुपम सच्चा ज्ञान, फिर मै क्यों छोडू इसे, पढ़ लू झूठ कुरान। वेद धर्म छोडू नहीं, कोसिस करो हज़ार, तिल-तिल काटो चाहि, गोदो अंग कटार॥'' (रैदास रामायण) यातनाये सहने के पश्चात् भी वे अपने वैदिक धर्म पर अडिग रहे, और अपने अनुयायियों को बिधर्मी होने से बचा लिया, ऐसे थे हमारे महान संत रविदास जिन्होंने धर्म, देश रक्षार्थ सारा जीवन लगा दिया इनकी मृत्यु चैत्र शुक्ल चतुर्दसी विक्रम सम्बत १५८४ रविवार के दिन चित्तौड़ में हुआ, वे आज हमारे बीच नहीं है उनकी स्मृति आज भी हमें उनके आदर्शो पर चलने हेतु प्रेरित करती है आज भी उनका जीवन हमारे समाज के लिए प्रासंगिक है। हमें यह ध्यान रखना होगा की आज के छह सौ वर्ष पहले चमार जाती थी ही नहीं। इस समाज ने पद्दलित होना स्वीकार किया, धर्म बचाने हेतु सुवर पलना स्वीकार किया, लेकिन बिधर्मी होना स्वीकार नहीं किया आज भी यह समाज हिन्दू धर्म का आधार बनकर खड़ा है, हिन्दू समाज में छुवा-छूत, भेद-भाव, उंच-नीच का भाव था ही नहीं ये सब कुरीतियाँ इस्लामिक काल की देन है, हमें इस चुनौती को स्वीकार कर इसे समूल नष्ट करना होगा यही संत रविदास के प्रति सच्ची भक्ति होगी।

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