यहां कभी ठंडी नहीं होती चिताओं की आग !

यहां कभी ठंडी नहीं होती चिताओं की आग

Varanasi:


जीने की तमन्ना लिये हर साल लाखों की संख्या में लोग गांवों से शहर की ओर आते हैं. लेकिन इस पृथ्वी पर एक शहर ऐसा जहां लोग मरने की इच्छा लेकर आते हैं. जी हां यह शहर है तीनों लोकों से न्यारी काशी. जिस देश में बनारस और वर्ल्‍ड मैप पर वाराणसी नाम से भी जाना जाता है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार पूरी काशी नगरी ही महाश्मशान है. पर इस महाश्मशान में भी एक जगह ऐसी है जहां मरने के बाद सीधे मोक्ष मिलता है. यह जगह है गंगा किनारे का एक घाट मणिकर्णिका. कहते हैं कि यहां पर चिताओं की आग कभी ठंडी नहीं पड़ती. गर्मी हो, सर्दी हो या बरसात, यहां अनवरत चिता जलती रहती है. खास यह कि चिताओं की यह आग सैकड़ों हजारों सालों से जलती ही आ रही है. इसका क्रम कभी नहीं टूटता.

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार 'मणिकर्णिका' में शिव की अर्धांगिनी सती के कर्णफूल गिरे थे. अपने पिता दक्ष के यज्ञ में तिरस्कृत होने पर सती खुद को यज्ञ की अग्नि में भस्म कर लेती हैं. शिव जी को यह बात पता चलती है और वे उद्विग्न हो उठते हैं. विक्षिप्त होकर वे उनका शरीर लेकर पूरे ब्रह्मांड में चक्कर लगाते हैं इसी दौरान उनकी कानों के फूल यहां गिरे थे. इसके अलावा मणिकार्णिका से जुडी एक और कथा है कि काशी प्रवास के दौरान शिव व पार्वती ने यहां स्थित कुंड में स्नान किया था. इस दौरान माता पार्वती के कानों का कुंडल यहां गिर गया था. इसी के बाद इसी स्थल का नाम मणिकर्णिका पड़ा. मान्यता है कि यहां पर जिसका अंतिम संस्कार होता है वो सीधे स्वर्ग पहुंचता है. कहीं कोई रुकावट या रोड़ा नहीं लगता. बार बार जन्म लेने से छुटकारा.

मोक्ष यानि की टोटल डेथ.


काशी में दो श्मशान है. एक हरिश्चंद्र घाट पर तो दूसरा मणिकर्णिका. इन दोनों में श्मशानों को लेकर बहुत कथाएं प्रचलित हैं. इन्हीं कथाओं में मणिकर्णिका को लेकर कहा जाता है कि यहां चिताओं की आग कभी ठंडी नहीं होती. यहां की व्यवस्था डोम राजा परिवार के हाथों में. कोई भी शवदाह करने के लिए यहां आता है तो उसे डोम परिवार से मुक्ति की आग देते हैं. यहां की चिताओं के लिए माचिस से आग प्रज्ज्वलित नहीं की जाती. ऐसी मान्यता भी है कि यहां पर आने वाले शव के साथ स्वंय शिव रहते हैं और मरने वाले को तारक मंत्र देते हैं ताकि उसे मोक्ष की प्राप्ति हो. मान्यता यह भी है कि इस महाश्मशान पर अनादि काल से जल रही अग्नि न ठंडी हुई है और न कभी ठंडी होगी. इसी अनादि काल से जल रही अग्नि से ही चिताओं को अग्नि दी जाती है. वैसे तो इस महाश्मशान के बारे में शिव पुराण के अलावा अन्य कई ग्रंथों में बहुत से उल्लेख हैं लेकिन धार्मिक मान्यता के अनुसार मर्णिकर्णिका शिव का सबसे प्रिय स्थल है. इस बारे में सतुआ बाबा पीठ के महामंडलेश्वर संतोष दास बताते हैं कि काशी में मरना ही मुक्ति है इसलिए अपने जीवन के अंतिम समय में बहुत से लोग 'काश्याम मरण्याम मुक्ति' की धारणा लिए यहां आते हैं और यहीं पर देह त्याग कर परमतत्व में लीन हो जाते हैं. वहीं लोगों को आग देने वाले डोम परिवार के सदस्य माता प्रसाद चौधरी का कहना है कि यहां पर चिताएं कब से जल रही हैं इसका ठीक ठीक प्रमाण उपलब्ध नहीं है. लेकिन यह स्थल लोगों को मोक्ष देता आ रहा है.

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