कार्ल मार्क्स

धर्म को अफीम मानने वाले "कार्ल मार्क्स" की नाजायज औलादें चरस खाकर JNU में साम्यवाद के उपदेश देती है और सनातन धर्म को समाप्त करने के सपने देखती है..!!
"हीगल" के विचारों का खून करके मनुष्य को पेट पालने वाला जानवर समझने वाले मार्क्स ने सनातन को जाना होता तो राक्षसी विचारधारा को जन्म न देता…!!
मार्क्स ने स्वयं दो भोगवादी पंथो को अपनाया था जिससे उसकी मानसिकता बन गई कि, धर्म पूंजीवादियों का पोषक है और पिछड़ो का शोषक, लेकिन इस तथाकथित बुद्धिजीवी ने सनातन को नहीं जाना जिसमें "सर्वजनसुखाय और वसुधैव कुटुम्बकम्" के सिद्धान्त प्राणी मात्र के सुख की कामना करते है ...!!! वो धर्म क्या पूंजीवाद को बढ़ावा देगा जिस धर्म में दान करने के पचासों तरीके बताये गए हैं..!!
सनातन, को इन राक्षसी विचारधारा वालों से समानता सीखने की आवश्यकता नहीं है जो "अमीर को गरीब और गरीब से अमीर बने हुए व्यक्ति को फिर से गरीब बनाने के उपदेश देती है..!! जिसमें लेनिन, स्टालिन,माओतसेतुंग, फिदेल कास्त्रो जैसे भेड़िये तानाशाह पनपते है …!!!
अरे हम वो सनातनी है जिसमें "नामदेव" जैसे संत हुए जिनकी रोटी कुत्ता उठाके जाता है तो कुत्ते को डंडा लेके पीटने की बजाय, उसके पीछे घी का कटोरा लेके भागते है और कहते है कि...
"प्रभु रूखी न खाओ थोड़ा घी तो लेते जाओ"
हमने तो प्राणी मात्र में ईश्वर को देखा है..!! जो सनातन पेड़- पौधों में भी ईश्वर का रूप देखता है, जो सनातन तत्व की दृष्टि से समस्त प्राणियों को परब्रह्म परमात्मा का सनातन अंश मानता हो, उसे तुम नक्सली समानता सिखाओगे..??
एक बात कान खोल के सुन लो अधर्मियों "जो सनातन नहीं मिटा लंकेश की तलवार से, जो सनातन नहीं मिटा कंस की हुंकार से वो सनातन क्या मिटेगा लाल चढ्ढी वालों की चित्कार से..!!

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