अगर आप लीडर हैं तो वादा तोडऩे का कोई हक नहीं .


 
 
सन् 1984 में फानुस पुंजी ओडिशा में आमलापालिन के पास खरियार में रहती थी। उन दिनों उसके बारे में अखबारों में सुर्खियां बनीं। क्योंकि उसने भूख से बचने के लिए अपनी ननद को 40 रुपए में बेच दिया था। केंद्र में राजीव गांधी की सरकार थी। उन तक भी यह खबर पहुंची। वे पॉलीथिन से ढंके पुंजी के घर पहुंचे तो वह खाना खा रही थी। कनकी (मोटा चावल) और साग। प्रधानमंत्री और उनकी पत्नी ने वही खाया चलते-चलते उस परिवार को यकीन दिलाया कि जो मदद हो सकेगी, करेंगे। 
 
 
प्रधानमंत्री ने वहां मौजूद अफसरों को इस बाबत निर्देश भी दिए। लेकिन उनमें से किसी ने पुंजी और उसके परिवार की खबर नहीं ली। सरकार की ओर से इंदिरा आवास योजना के तहत इस परिवार को एक घर जरूर दिया गया। लेकिन वह पहली बारिश में ही ढह गया। इस परिवार को वापस पॉलीथिन से ढके अपने पुराने आसरे में आकर ठहरना पड़ा। आज तीस साल बाद भी पुंजी के परिवार के लिए वक्त जैसे ठहर गया है। बीमारी की वजह से पुंजी के पति की 2002 में मौत हो गई। 
 
 
पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या के बाद चुनाव प्रचार के सिलसिले में उनकी पत्नी सोनिया और पुत्र राहुल कई बार ओडिशा आए। पुंजी ने उनसे मिलने की काफी कोशिश की। लेकिन सफल नहीं हुई। राहुल ने 2008 में तो उसी कस्बे से 'डिस्कवर इंडिया' नामक यात्रा की शुरुआत की थी जहां पुंजी का परिवार रहता है। लेकिन उस वक्त भी वह मिलने में असफल रही। 
 

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