Nasa agency research. अंतरिक्ष एजेंसी नासा का प्लेनेटेरियम सॉफ्टवेयर रामायणकालीन हर घटना की गणना कर सकता है।

अंतरिक्ष एजेंसी नासा का प्लेनेटेरियम सॉफ्टवेयर रामायणकालीन हर घटना की गणना कर सकता है। इसमें राम को वनवास हो, राम-रावण युद्ध हो या फिर अन्य कोई घटनाक्रम। इस सॉफ्टवेयर की गणना बताती है कि ईसा पूर्व 5076 साल पहले राम ने रावण का संहार किया था। कई ऐसे लोग हैं, जो प्रभु श्रीराम के इतिहास को भ्रमित करने का कार्य कर रहे हैं। कुछ तथाकथित विद्वान कहते हैं कि रामायण काल की लंका आज की श्रीलंका नहीं, बल्कि भारत के अमरकंटक के पास एक विशेष स्थान को रावण की लंका कहा जाता था तो कोई कहता है कि यह लंका जावा या सुमात्रा के पास कहीं थी। ऐसे सारे दावे तथ्‍यहीन हैं।

दरअसल, रावण ने सुंबा और बाली द्वीप को जीतकर अपने शासन का विस्तार करते हुए अंगद्वीप, मलयद्वीप, वराहद्वीप, शंखद्वीप, कुशद्वीप, यवद्वीप और आंध्रालय पर विजय प्राप्त की थी। इसके बाद रावण ने लंका को अपना लक्ष्य बनाया। लंका पर कुबेर का राज्य था। लंका को जीतकर रावण ने उसको अपना नया निवास स्‍थान बनाया।

श्रीलंका में वह स्थान ढूंढ लिया गया है, जहां रावण की सोने की लंका थी। ऐसा माना जाता है कि जंगलों के बीच रानागिल की विशालकाय पहाड़ी पर रावण की गुफा है, जहां उसने तपस्या की थी। रावण के पुष्पक विमान के उतरने के स्थान को भी ढूंढ लिया गया है।

श्रीलंका का इंटरनेशनल रामायण रिसर्च सेंटर और वहां के पर्यटन मंत्रालय ने मिलकर रामायण से जुड़े ऐसे 50 स्थल ढूंढ लिए हैं जिनका पुरातात्विक और ऐतिहासिक महत्व है और जिनका रामायण में भी उल्लेख मिलता है। श्रीलंका में वह स्थान ढूंढ लिया गया है, जहां रावण की सोने की लंका थी। अशोक वाटिका, राम-रावण युद्ध भूमि, रावण की गुफा, रावण के हवाई अड्डे, रावण का शव, रावण का महल और ऐसे 50 रामायणकालीन स्थलों की खोज करने का दावा ‍किया गया है। बाकायदा इसके सबूत भी पेश किए गए हैं।

रावण ने कुबेर को लंका से हटाकर वहां खुद का राज्य कायम किया था। धनपति कुबेर के पास पुष्पक विमान था जिसे रावण ने छीन लिया था। रामायण में उल्लेख मिलता है कि यह पुष्पक विमान इच्छानुसार छोटा या बड़ा हो जाता था तथा मन की गति से उड़ान भरता था।

वाल्मीकि रामायण में लंका को समुद्र के पार द्वीप के मध्य में स्थित बताया गया है अर्थात आज की श्रीलंका के मध्य में रावण की लंका स्थित थी। श्रीलंका के संस्कृत एवं पाली साहित्य का प्राचीनकाल से ही भारत से घनिष्ठ संबंध था। भारतीय महाकाव्यों की परंपरा पर आधारित 'जानकी हरण' के रचनाकार कुमार दास के संबंध में कहा जाता है कि वे महाकवि कालिदास के अनन्य मित्र थे। कुमार दास (512-21ई.) लंका के राजा थे। इसे पहले 700 ईसापूर्व श्रीलंका में 'मलेराज की कथा' की कथा सिंहली भाषा में जन-जन में प्रचलित रही, जो राम के जीवन से जुड़ी है।

अंतरिक्ष एजेंसी नासा का प्लेनेटेरियम सॉफ्टवेयर रामायणकालीन हर घटना की गणना कर सकता है। इसमें राम को वनवास हो, राम-रावण युद्ध हो या फिर अन्य कोई घटनाक्रम। इस सॉफ्टवेयर की गणना बताती है कि ईसा पूर्व 5076 साल पहले राम ने रावण का संहार किया था।
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रामसेतु : रामसेतु पुल आज के समय में भारत के दक्षिण-पूर्वी तट के किनारे रामेश्वरम द्वीप तथा श्रीलंका के उत्तर-पश्चिमी तट पर मन्नार द्वीप के मध्य चूना पत्थर से बनी एक श्रृंखला है। वाल्मीकि के अनुसार 3 दिन की खोजबीन के बाद नल और नील ने रामेश्वरम के आगे समुद्र में वह स्थान ढूंढ़ निकाला, जहां से आसानी से श्रीलंका पहुंचा जा सकता हो। उक्त स्थान से लंका तक का पुल निर्माण करने का फैसला लिया गया। उस स्थान को धनुषकोडी कहा जाता है। इसका नाम धनुषकोडी इसलिए है कि यहां से श्रीलंका तक नल और नील ने जो पुल (रामसेतु) बनाया था उसका आकार धनुष के समान ही है।
ram setu
नल और नील के सान्निध्य में वानर सेना ने 5 दिन में 30 किलोमीटर लंबा और 3 किलोमीटर चौड़ा पूल तैयार किया था। शोधकर्ताओं के अनुसार इसके लिए एक विशेष प्रकार के पत्‍थर का इस्तेमाल किया गया था जिसे विज्ञान की भाषा में ‘प्यूमाइस स्टोन' कहते हैं। यह पत्थर पानी में नहीं डूबता है। रामेश्वरम में आई सुनामी के दौरान समुद्र किनारे इस पत्थर को देखा गया था। आज भी भारत के कई साधु-संतों के पास इस तरह के पत्थर हैं।

तैरने वाला यह पत्थर ज्वालामुखी के लावा से आकार लेते हुए अपने आप बनता है। ज्वालामुखी से बाहर आता हुआ लावा जब वातावरण से मिलता है तो उसके साथ ठंडी या उससे कम तापमान की हवा मिल जाती है। यह गर्म और ठंडे का मिलाप ही इस पत्थर में कई तरह से छेद कर देता है, जो अंत में इसे एक स्पांजी, जिसे हम आम भाषा में खंखरा कहते हैं, इस प्रकार का आकार देता है।

प्यूमाइस पत्थर के छेदों में हवा भरी रहती है, जो इसे पानी से हल्का बनाती है जिस कारण यह डूबता नहीं है। लेकिन जैसे ही धीरे-धीरे इन छिद्रों में पानी भरता है तो यह पत्थर भी पानी में डूबना शुरू हो जाता है। यही कारण है कि रामसेतु पुल कुछ समय बाद डूब गया था और बाद में इस पर अन्य तरह के पत्थर जमा हो गए। माना जाता है कि आज भी समुद्र के निचले भाग पर रामसेतु मौजूद है।
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वेरांगटोक : महियांगना मध्य, श्रीलंका स्थित नुवारा एलिया का एक पर्वतीय क्षेत्र, जो वेरांगटोक (जो महियांगना से 10 किलोमीटर दूर है) में है, को रावण के हवाई अड्डे का क्षेत्र कहा जाता है। यहीं पर रावण ने सीता का हरण कर पुष्पक विमान को उतारा था।

वैलाव्या और ऐला के बीच 17 मील लंबे मार्ग पर रावण से जुड़े अवशेष अब भी मौजूद हैं। श्रीलंका की श्री रामायण रिसर्च कमेटी के अनुसार रावण के 4 हवाई अड्डे थे। उनके 4 हवाई अड्डे ये हैं- उसानगोड़ा, गुरुलोपोथा, तोतूपोलाकंदा और वारियापोला। इन 4 में से एक उसानगोड़ा हवाई अड्डा नष्ट हो गया था। कमेटी के अनुसार सीता की तलाश में जब हनुमान लंका पहुंचे तो लंका दहन में रावण का उसानगोड़ा हवाई अड्डा नष्ट हो गया था।

उसानगोड़ा हवाई अड्डे को स्वयं रावण निजी तौर पर इस्तेमाल करता था। यहां रनवे लाल रंग का है। इसके आसपास की जमीन कहीं काली तो कहीं हरी घास वाली है। रिसर्च कमेटी के अनुसार पिछले 4 साल की खोज में ये हवाई अड्डे मिले हैं। कमेटी की रिसर्च के मुता‍बिक रामायण काल से जुड़ी लंका वास्तव में श्रीलंका ही है।

श्री रामायण रिसर्च कमेटी : वर्ष 2004 में पंजाब के बांगा इलाके के रहने वाले अशोक कैंथ श्रीलंका में अशोक वाटिका की खोज की सुर्खियां में आया था। श्रीलंका सरकार ने 2007 में रिसर्च कमेटी का गठन किया।

कमेटी में श्रीलंका के पर्यटन मंत्रालय के डायरेक्टर जनरल क्लाइव सिलवम, ऑस्ट्रेलिया के डेरिक बाक्सी, श्रीलंका के पीवाई सुंदरेशम, जर्मनी की उर्सला मुलर, इंग्लैंड की हिमी जायज शामिल हैं। अब तक कमेटी ने श्रीलंका में रावण के महल, विभीषण महल, श्रीगुरु नानक के लंका प्रवास पर रिसर्च की है।
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सीता एलिया : सीता एलिया श्री लंका में स्थित वह स्थान है जहां रावण ने माता सीता को बंदी बना कर रखा था। माता सीता को सीता एलिया में एक वाटिका में रखा गया था जिसे अशोक वाटिका कहते हैं। वेरांगटोक से सीता माता को जहां ले जाया गया था उस स्थान का नाम गुरुलपोटा है जिसे अब 'सीतोकोटुवा' नाम से जाना जाता है। यह स्थान भी महियांगना के पास है। एलिया पर्वतीय क्षेत्र की एक गुफा में सीता माता को रखा गया था जिसे 'सीता एलिया' नाम से जाना जाता है। यहां सीता माता के नाम पर एक मंदिर भी है। यह मंदिर सीता अम्मन कोविले नाम से प्रसिद्ध है।

सीता एलिया में रावण की भतीजी त्रिजटा, जो सीता की देखभाल के लिए रखी गई थी, के साथ सीता को रखा गया था। यह स्थान न्यूराएलिया से उदा घाटी तक जाने वाली एक मुख्य सड़क पर 5 मील की दूरी पर स्थित है।

इस क्षेत्र में लाखों की तादाद में आज भी अशोक के लंबे-लंबे वृक्ष विद्यमान हैं। अशोक वृक्षों की अधिकता होने के कारण ही इसे अशोक वाटिका कहा जाता है। मंदिर के पास ही से 'सीता' नाम से एक नदी बहती है जिसका निर्मल और शीतल जल पीकर लोग खुद को भाग्यशाली समझते हैं। नदी के इस पार मिट्टी का रंग पीला है तो उस पार काला। मान्यता अनुसार उस पार के क्षेत्र को हनुमानजी ने अपनी पूंछ से लगा दिया था।

इस स्थान की शिलाओं पर आज भी हनुमानजी के पैरों के निशान देखे जा सकते हैं। कार्बन डेटिंग से इसकी उम्र लगभग 7 हजार वर्ष पूर्व की आंकी गई है। यहां सीता माता के मंदिर में राम, लक्ष्मण, हनुमान और सीताजी की जो मूर्तियां रखी हैं उनकी कार्बन डेटिंग से पता चला कि वह भी 5,000 वर्ष पुरानी है। आज जिस स्थान पर मंदिर है वहां कभी विशालकाय वृक्ष हुआ करता था जिसके नीचे माता सीता बैठी रहती थीं।
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रावण का महल : श्रीलंका में नुआरा एलिया पहाड़ियों के आसपास स्थित रावण फॉल, रावण गुफाएं, अशोक वाटिका, खंडहर हो चुके विभीषण के महल आदि की पुरातात्विक जांच से इनके रामायण काल के होने की पुष्टि होती है।

सीता एलिया में स्थित अशोक वाटिका से कुछ दूर ही रावण का महल स्थित था। कहा जाता है कि लंकापति रावण के महल, जिसमें वह अपनी पटरानी मंदोदरी के साथ निवास करता था, के अब भी अवशेष मौजूद हैं। इस महल को पवनपुत्र हनुमान ने लंका के साथ जला दिया था। यह जला हुआ महल आज भी मौजूद है।

'रावण एल्ला' नाम से एक झरना है, जो एक अंडाकार चट्टान से लगभग 25 मीटर अर्थात 82 फुट की ऊंचाई से गिरता है। 'रावण एल्ला' वॉटर फॉल घने जंगलों के बीच स्थित है। यहां 'सीता' नाम से एक पुल भी है। इसी क्षेत्र में रावण की एक गुफा भी है जिसे 'रावण एल्ला' गुफा के नाम से जाना जाता है। यह गुफा समुद्र की सतह से 1,370 मी. की ऊंचाई पर स्थित है। यह स्थान श्रीलंका के बांद्रावेला से 11 किलोमीटर दूर है।

लोरानी सेनारत्ने, जो लंबे समय तक श्रीलंका के इतिहास और सांस्कृतिक पृष्ठभूमि से संबंधित रही हैं और श्रीलंका की इटली में राजदूत भी रह चुकी हैं, ने अपनी पुस्तक 'हेअरस टू हिस्ट्री' में पहले 2 भाग रावण पर ही लिखे हैं। उनके अनुसार रावण 4,000 वर्ष ईसा पूर्व हुआ था। रावण चमकते हुए दरवाजे वाले 900 कमरों के महल में निवास करता था। देश के अन्य भागों में उसके 25 महल या आरामगाहें थीं। -डॉ. विद्याधर की शोध पुस्तिका 'रामायण की लंका' से अंश। (साभार : पांचजञ्य)

Maggi Banned in India. हमारा भारतीय समाज भी अजीब है कोई भी सही काम आसानी से पचा नहीं पाता।

हमारा भारतीय समाज भी अजीब है कोई भी सही काम आसानी से पचा नहीं पाता। अब मैग्गी पर लगे बैन को ही देख लीजिये, कोई ये नहीं कह रहा कि यह सही हुआ है कि एक बच्चों की सेहत के साथ खिलवाड़ करने वाले उत्पाद पर रोक लग गई। हर कोई लगा हुआ है इस रोक का मज़ाक उडाने में। कुछ whatsapp पर आये मेसेज की बानगी देखिये-
1. एक मेसेज के अनुसार मैग्गी से जहरीला दूध बिक रहा है उसे क्यों नहीं रोकते।
2. दूसरे मेसेज के अनुसार जब यूपी वालो का सडे हुए तेल के भठूरे, मच्छरो से भरी चाशनी की जलेबी आदि कुछ ना बिगाड़ पायी तो मैग्गी का लेड क्या चीज़ है।
3. तीसरे मेसेज के अनुसार अगर मैग्गी में लेड है तो क्या सिगरेट गुटके में पौष्टिक तत्व है जो वो बिक रहा है।


आज ही मिले कुछ नए मेसेज में बाबा रामदेव और आरएसएस को भी लपेट लिया है। फोटोशॉप से एडिट किये गए रामदेव मैग्गी के पैक whatsapp पर खूब भेजे जा रहे है जिस में मैग्गी के पैकेट पर बाबा राम की फोटो और आरएसएस द्वारा एप्रूव्ड की मोहर लगी है। इस मामले में बाबा रामदेव औरआरएसएस को बिना मतलब ही खींचा जा रहा है क्योंकि मैग्गी पर लगे बैन पर इनका कोई हाथ नहीं है।

पता नहीं क्यों, लोग ये समझने को तैयार नहीं कि मैग्गी के सबसे ज्यादा उपभोक्ता उनके अपने बच्चे है और मैग्गी में मिला मोनोसोडियम ग्लूटामेट बच्चों की पाचन शक्ति को ख़राब करने के साथ साथ उन्हें जंक फ़ूड का आदी भी बना रहा है। जैसे एक नशेड़ी को नशे के सिवा कुछ नहीं सूझता बैसे ही जंक फ़ूड के आदी बच्चों का व्यवहार होता जा रहा है।
आज बच्चे घर के बने पौष्टिक खाना खाने को तैयार नहीं उन्हें तो सिर्फ मैग्गी, चाउमिन,बर्गर आदि ही चाहिए।

सब को पता है कि सिगरेट, गुटके सहेत के लिये हानिकारक है मगर उन्हें इस्तेमाल करने वाले तो वो समझदार लोग है जिन्हें अपनी सहेत की खुद ही चिंता नहीं तो दूसरा क्या करे।


इसीप्रकार दूध या अन्य खाद्य पदार्थो में हुई मिलावट को ले लीजिये, हम चाहते तो है कि हमें शुद्ध सामान मिले मगर हम इस मिलावट का विरोध करने के लिए तैयार नहीं। हमें दिख रहा है हलवाई का तेल बिलकुल फुका हुआ और गन्दा है या उसकी चाशनी में मक्खी मच्छर पड़े है फिर भी हम से उस से भठूरे, समोसे या जलेबी ले रहे है। हम मिलावटी दूध 40रुपये के हिसाब से खरीदने को तैयार है मगर 50 रुपये में मिलने वाले शुद्ध दूध की थैली नहीं खरीदेंगे।
मैग्गी एक बहुराष्ट्रीय कंपनी का बहुप्रचारित ब्रांड है इसके प्रचार प्रसार में जितने पैसे खर्च होते उतने तो इसे बनाने में भी खर्च नहीं होते और इसके प्रचार का एक मात्र टार्गेट है बच्चे। इस पे रोक देशहित से ज्यादा बच्चों के हित में है।
ये सब भारत की जगह किसी और देश में हुआ होता तो मैग्गी पर बैन के साथ इसे बनाने वाली nestle कंपनी पर कई मुकदमे हो गए होते मगर हमें क्या
हम भारतीय मैग्गी जरूर खायेंगे और स्वदेशी उत्पादों पर ऊँगली उठायेंगे।

Sex is natural . सेक्स प्रकृति द्वारा प्रदत्त आनन्द और मनोरंजन का साधन भी है।

सेक्स प्रकृति द्वारा प्रदत्त आनन्द और मनोरंजन का साधन भी है। प्रकृति एक विशेष उम्र के बाद हर प्राणी के नर और मादा को मिलन के लिए प्रेरित करती है।

नई दिल्ली: सर्विस टैक्स का 12.36 फीसदी से 14 फीसदी होना अब हर तरफ से महंगा पड़ रहा है।

नई दिल्ली: सर्विस टैक्स का 12.36 फीसदी से 14 फीसदी होना अब हर तरफ से महंगा पड़ रहा है।
अस्पताल, होटल, मोबाइल बिल और बच्चों की पढ़ाई पर तो इसकी मार पहले ही पड़ चुकी है अब आपका पैन कार्ड भी बढ़े हुए सर्विस टैक्स के कारण एक रुपए महंगा हो चुका है।

गौरतलब है कि एक जून से बढ़े हुए सर्विस टैक्स को लागू कर दिया गया है। हर प्रकार की वित्तीय गतिविधियों के लिए जरुरी पैन कार्ड रखना अब लगभग अनिवार्य कर दिया गया है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी इसके उपयोग पर काफी जोर दे चुके हैं। अभी तक आयकर विभाग के जरिए बनने वाला पैन कार्ड महज 105 रुपए में बन जाता था, लेकिन अब आपको बढ़े हुए सर्विस टैक्स के कारण 106 रुपए अदा करने होंगे। वहीं उस नए पैन कार्ड का भी खर्चा बढ़ चुका है जिसे देश के बाहर भेजा जा सकता था। अब इस पर भी आपको 14 अतिरिक्त रुपए देने होंगे। यानी अभी तक जिसके लिए हम 971 रुपए अदा करते थे उसपर हमें 985 रुपए खर्च करने पड़ेंगे।

अगर आपका भी पैन कार्ड गुम हो गया है तो घबराइए नहीं बेहद आसान है नए के लिए एप्लाए करना पैन कार्ड गुम हो जाने पर अक्सर लोग  परेशान हो जाते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि वित्तीय लेन देन जैसे तमाम कामों में इस्तेमाल आने वाला पैनकार्ड बहुत ही आसानी से दोबारा बनवाया जा सकता है। आप कुछ आसान तरीकों से अपने नए पैन कार्ड को बनवा सकते हैं। आपको इसके लिए बस कुछ जरूरी कदम भर चलने होंगे। खो जाए पैन कार्ड तो क्या करें- सबसे पहले आपको पैन कार्ड खोने पर इनकम टैक्स की सर्विसेज यूनिट पर
जाना होगा। इस साइट पर दिए गए तमाम विकल्पों में से आपको रीप्रिंट पैन कार्ड का चयन करना होगा। यह
विकल्प उन धारकों के लिए होता है जिनकों इनकम टैक्स डिपार्टमेंट पहले पैन नंबर जारी कर चुका होता है। इस विकल्प के जरिए आपको विभाग द्वारा फिर से नया पैन कार्ड दिए जाने का प्रोसेस शुरू हो जाएगा।नया पैन कार्ड बनवाने के लिए आपको एक फॉर्म भरना होगा। फॉर्म भरने के दौरान यह सावधानी बरतें कि आपको
सभी कॉलम भरने हैं लेकिन बाएं वाले मार्जिन के किसी भी बाक्स को सही या गलत का निशान नहीं लगाना है।

नए कार्ड को बनवाने के लिए आपको 105 रुपए का भुगतान करना होगा। यह भुगतान आप क्रेडिट कार्ड या डेबिट कार्ड के साथ साथ चेक एवं डिमांड ड्राफ्ट से भी कर सकते हैं। सावधानी से पूरा फॉर्म भरकर सबमिट करने के बाद आपके पास आपको एक एकनॉलेजमेंट रिसीट मिल जाएगा। इस रिसीट का प्रिंट आउट निकालना जरूरी है। इस रिसीट पर 2.5 सेमी गुणा 3.5 सेमी की एक फोटो चिपकानी होती है। ध्यान दें फोटो रंगीन होनी चाहिए। इसके बाद आप इस पर हस्ताक्षर कर दें। इसके बाद आपको इसे पुणे के एक एनएसडीएल ऑफिस भेजना होता है। मगर आपको इस फॉर्म के साथ साथ भुगतान की राशि का चेक या डिमांड ड्राफ्ट, एड्रेस प्रूफ और डेट ऑफ बर्थ के प्रमाणपत्र भी भेजने होते हैं। अगर आपने ऑनलाइन आवेदन किया है तो आपको करीब 15 दिनों के भीतर आपका पैन कार्ड मिल जाएगा। न आए तो जांचे अपने पैन कार्ड का स्टेटस- अगर आपको 15 दिनों के भीतर पैन कार्ड नहीं मिलता है तो आप आयकर विभाग की साइट पर जाकर वहां पैन कॉलम पर क्लिक करके अपने कार्ड का स्टेटस जान सकते हैं।

आप मोबाइल पर NSDLPAN टाइप कर 57575 पर संदेश भेजकर भी स्थिति जान सकते हैं।

मन को बदले, स्थितियां अपने आप बदल जायेंगी |



एक बार एक सैनिक अधिकारी की नियुक्ति रेगिस्तानी इलाके में हो गयी। उसकी पत्नी को भी वहीँ रहने जाना पडा। लेकिन, उसे धूल बिलकुल भी पसंद नहीं थी। उसका पति तो रोज ट्रेनिंग के लिए चला जाता और उसे छोटे-से घर में अकेला रहना पड़ता। वहाँ तापमान ज्यादा रहता और गर्म हवाएं भी चलती।

शहरी माहौल में पली बड़ी इस महिला को वहाँ के स्थानीय निवासियों का साथ भी पसंद नहीं था। वह उन्हें पिछड़ा हुआ और गंवार समझती। एक दिन दुखी होकर उसने अपने माता-पिता को पत्र लिखा कि वह और बर्दास्त नहीं कर सकती। सब कुछ छोड़ कर मायके आना चाहती है। यहाँ रहने से तो जेल में रहना आना अच्छा है। जवाब में उसके जेलर पिता ने उसे दो पंक्तियाँ लिख भेजी- 'दो कैदियों ने एक साथ जेल के बहार देखा। पर, एक ने आसमान में तारे देखे, और दुसरे ने जमीन में कीचड देखा'।

यह महिला सोच में पड़ गई। उसे लगा पिता ने ठीक लिखा है। ये दुनिया इतनी बुरी भी नहीं है। उसने स्थानीय लोगों के साथ मेल-जोल बढाना शुरू कर दिया। वे लोग उसे अपनी कला के उत्कर्ष्ठ व प्रिय नमूने भेंट में देने लगे। अब वह रेगिस्तान में उगते और डूबते सूरज का बडे मनोयोग से नजारा लेती। वही रेगिस्तान था और वहाँ रहने वाले लोग भी वही थे। कुछ भी नहीं बदला था। दरअसल, उसका मन बदल गया था। उसने स्वनिर्मित जेल से बहार निकल कर तारों को निहारा और अपनी दुनिया रोशन कर ली। जो चीजें उसे कस्टकारी लगा करती थीं, उन्हें उसने अत्यंत रोचक और रोमांचकारी अनुभवों में बदल लिया और सुख से रहने लगी।

यहां कभी ठंडी नहीं होती चिताओं की आग !

यहां कभी ठंडी नहीं होती चिताओं की आग

Varanasi:


जीने की तमन्ना लिये हर साल लाखों की संख्या में लोग गांवों से शहर की ओर आते हैं. लेकिन इस पृथ्वी पर एक शहर ऐसा जहां लोग मरने की इच्छा लेकर आते हैं. जी हां यह शहर है तीनों लोकों से न्यारी काशी. जिस देश में बनारस और वर्ल्‍ड मैप पर वाराणसी नाम से भी जाना जाता है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार पूरी काशी नगरी ही महाश्मशान है. पर इस महाश्मशान में भी एक जगह ऐसी है जहां मरने के बाद सीधे मोक्ष मिलता है. यह जगह है गंगा किनारे का एक घाट मणिकर्णिका. कहते हैं कि यहां पर चिताओं की आग कभी ठंडी नहीं पड़ती. गर्मी हो, सर्दी हो या बरसात, यहां अनवरत चिता जलती रहती है. खास यह कि चिताओं की यह आग सैकड़ों हजारों सालों से जलती ही आ रही है. इसका क्रम कभी नहीं टूटता.

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार 'मणिकर्णिका' में शिव की अर्धांगिनी सती के कर्णफूल गिरे थे. अपने पिता दक्ष के यज्ञ में तिरस्कृत होने पर सती खुद को यज्ञ की अग्नि में भस्म कर लेती हैं. शिव जी को यह बात पता चलती है और वे उद्विग्न हो उठते हैं. विक्षिप्त होकर वे उनका शरीर लेकर पूरे ब्रह्मांड में चक्कर लगाते हैं इसी दौरान उनकी कानों के फूल यहां गिरे थे. इसके अलावा मणिकार्णिका से जुडी एक और कथा है कि काशी प्रवास के दौरान शिव व पार्वती ने यहां स्थित कुंड में स्नान किया था. इस दौरान माता पार्वती के कानों का कुंडल यहां गिर गया था. इसी के बाद इसी स्थल का नाम मणिकर्णिका पड़ा. मान्यता है कि यहां पर जिसका अंतिम संस्कार होता है वो सीधे स्वर्ग पहुंचता है. कहीं कोई रुकावट या रोड़ा नहीं लगता. बार बार जन्म लेने से छुटकारा.

मोक्ष यानि की टोटल डेथ.


काशी में दो श्मशान है. एक हरिश्चंद्र घाट पर तो दूसरा मणिकर्णिका. इन दोनों में श्मशानों को लेकर बहुत कथाएं प्रचलित हैं. इन्हीं कथाओं में मणिकर्णिका को लेकर कहा जाता है कि यहां चिताओं की आग कभी ठंडी नहीं होती. यहां की व्यवस्था डोम राजा परिवार के हाथों में. कोई भी शवदाह करने के लिए यहां आता है तो उसे डोम परिवार से मुक्ति की आग देते हैं. यहां की चिताओं के लिए माचिस से आग प्रज्ज्वलित नहीं की जाती. ऐसी मान्यता भी है कि यहां पर आने वाले शव के साथ स्वंय शिव रहते हैं और मरने वाले को तारक मंत्र देते हैं ताकि उसे मोक्ष की प्राप्ति हो. मान्यता यह भी है कि इस महाश्मशान पर अनादि काल से जल रही अग्नि न ठंडी हुई है और न कभी ठंडी होगी. इसी अनादि काल से जल रही अग्नि से ही चिताओं को अग्नि दी जाती है. वैसे तो इस महाश्मशान के बारे में शिव पुराण के अलावा अन्य कई ग्रंथों में बहुत से उल्लेख हैं लेकिन धार्मिक मान्यता के अनुसार मर्णिकर्णिका शिव का सबसे प्रिय स्थल है. इस बारे में सतुआ बाबा पीठ के महामंडलेश्वर संतोष दास बताते हैं कि काशी में मरना ही मुक्ति है इसलिए अपने जीवन के अंतिम समय में बहुत से लोग 'काश्याम मरण्याम मुक्ति' की धारणा लिए यहां आते हैं और यहीं पर देह त्याग कर परमतत्व में लीन हो जाते हैं. वहीं लोगों को आग देने वाले डोम परिवार के सदस्य माता प्रसाद चौधरी का कहना है कि यहां पर चिताएं कब से जल रही हैं इसका ठीक ठीक प्रमाण उपलब्ध नहीं है. लेकिन यह स्थल लोगों को मोक्ष देता आ रहा है.

"कैसा होगा सुस्त जीवन जब हम केवल काले और सफेद में चीजों को देखते हैं। इस खूबसूरत दुनिया को बनाए रखने के लिए बीच के रंगों की जरूरत है। "

"कैसा होगा सुस्त जीवन जब हम केवल काले और सफेद में चीजों को देखते हैं। इस खूबसूरत दुनिया को बनाए रखने के लिए बीच के रंगों की जरूरत है। "



आपको लगता है कि मैं और अधिक खुश और प्रभावित हूँ दुनिया को अपने रंग-विरंगे नजरिये से देखने से बजाय काले और सफेद श्रेणियों के माध्यम से जीवन को देखकर। मुझे विश्वास नहीं है कि केवल दो ध्रुवों के बीच ही जीवन है। इनके बीच में स्लाइड्स की बहुत संख्या है। बस एक उदाहरण लें निर्णय लेने का। आप हाँ, नहीं या अनिर्णीता तय कर सकते हैं। लेकिन आप क्या चुनते हैं वही प्रारंभिक निर्णय तय करेगा की आपका परिणाम क्या होगा। मुझे नहीं लगता है कि हम पूरी तरह से संगठित बक्से में हमारे जीवन जीने के लिए बने हैं। मुझे विश्वास है कि खुश रहनेके लिए हर एक पल को ख़ुशी के साथ जीना चाहिए। मुझे कभी नहीं लगा कि मेरा जीवन कोई चरणों में होगा और मुझे कोई डर होगा कि उसकी कोई आखिरी तारीख होगी। मुझे लगता है हमको चीजों को सच्चाई के साथ देखने का तरीका अपनाना चाहिए।

एक दुर्घटना के दो गवाहों से पूछो तो उनकी कहानियों अलग-अलग होंगी जो की उनकी अपनी धारणा या जागरूकता के अपने स्तर के आधार पर अलग हो सकती है। क्या एक व्यक्ति को अधिक सटीक पता है तो दुसरे की तुलना हम कहाँ करें? मुझे लगता है यह निर्भर करता है कि मैं जीवन की परिस्थितियों को देखने के लिए खुला रहा हूँ या नहीं। मैं इसे कम तनाव चुनौतीपूर्ण स्थितियों का सामना कर पता हूँ या नहीं। यह हमेशा इतना आसान या स्पष्ट नहीं है। आप इसे जितना करते हैं, यह उतना ही सरल हो जाता है। हम सब उन लम्हों के साथ जीते हैं जो हमारे लिए चुनौती है और हमारी सकारात्मक भावना या काल्पनिक आशावाद पर छाया डालती हैं। लेकिन हमें हमेशा ये याद रखना चाहिए कि सूरज कभी बहुत लम्बे समय के लिए काले बादल के पीछे छिपा नहीं रहता है। यह फिर अपने पूरे तेज के साथ और उज्ज्वल होकर चमकता है।

आपकी एक मुस्कान का प्रभाव। You can make Impression by just a Smile.

क्या आपको आप याद है? कभी आपके माता पिता ने आपको कभी बुलाया है और कहा है आपको कुछ लोगों से दूर रहने के लिए, या कुछ स्थानों पर ना जाने के लिए संभावित समस्याओं से बचने के क्रम में और बुरे तत्व वाले लोगों से दूर रहने के लिए। हम जिस जगह जाते हैं, जिन लोगों से मिलते हैं, जो कुछ करते हैं और जिन लोगों के साथ रहते हैं उनका हमारे जीवन पर बहुत प्रभाव पड़ता है। हमारे दैनिक कामों का हम पर कुछ स्तर तक प्रभाव होता है। अब कार्यों और शब्दों से प्रभावित करने के साथ साथ, हम में से हर एक कुछ प्रकार की शक्ति को लगाते हैं, हमारे कार्यों और शब्दों के माध्यम से प्रभावित करने के लिए।



प्रभाव का एक बहुत ही सरल उदाहरण हमारी एक मुस्कान है। हम लोगों के साथ मुसकुरातें हैं, वे भी हमारे साथ मुसकुरातें हैं। किसी को नमस्ते कह कर हम उसे भी वापस नमस्ते कहने के लिए प्रभावित करतें हैं। कठोर शब्दों के साथ किसी को भी आम तौर पर एक प्रतिकूल प्रतिक्रिया मिलाती है। कोई हम पर ट्राफिक में हॉर्न बजता है और हम उससे प्रभावित होकर हम भी वापस हार्न बजाते हैं। कोई फर्क नहीं पड़ता स्थिति या घटना से, प्रभाव तो कुछ बिंदु पर निर्भर करता है।

तुम इस क्षण में जो पढ़ रहे हो वो आपको आज कुछ प्रभावित करेंगे कुछ सोचने या करने के लिए। हम सब पर्यावरण के उत्पादों में से एक हैं। इसके आसपास कोई रास्ता नहीं है। हालांकि, हम चयन कर सकते हैं कि हम प्रभाव में कैसे प्रतिक्रिया करें। एक जल्द ठहराव किसी का दिन बनाने में अंतर हो सकता है। तो इसलिए अपने अच्छे प्रभावों से लोगों को प्रभावित करें और उनको भी अच्छा महसूस कराये। प्रभावित करने लिए मुबारक हो।

हाँ, मैं तुम पर विश्वास करता हूँ. Yes, I Believe you.

मेरे स्कूल के दिनों के दौरान, मैं एक बहुत ही शर्मीला और दूर रहने वाले बच्चों में से एक था मैं अपना पूरा दिन एक कोने में बैठ कर बिता सकता था। मेरे लिए, मेरी किताबें मेरी ही दुनिया थी। यहां तक कि छुट्टियों के दौरान, मैं सिर्फ जमीन के एक कोने में बैठता और अन्य लोगों के खेल को ही देखता रहता था। अपने साथियों की तुलना में, बहुत अधिक शर्मीला था, और मुझे कोई दोस्त बनने में कोई दिलचस्पी नहीं थी, मैं हमेशा अपने आप को अपने बराबर वालों के नीचे महसूस करता था। मेरे मन में एक पूर्वाग्रह धारणा थी कि मैं हमेशा नई दोस्ती के लिए मुझे माना ही कर दिया जायेगा। और मैं सिर्फ अस्वीकृति का पीड़ित नहीं बनना चाहता था।






एक बार जब मेरी अंग्रेजी कक्षा के दौरान मेरे शिक्षक ने हमारे साथ एक छोटी सी कहानी साझा की है। यह राजा ब्रूस और एक मकड़ी के बारे में थी। यह एक हारी हुई लड़ाई और राजा ब्रूस के आसपास घूमती है, कि लड़ाई हारने के बाद भी अंत में जीत कैसे होती है। उन्होंने कहा कि जेल में एक छोटे से मकड़ी से उनको कैसे प्रेरणा मिली। मकड़ी को मिली असफलता और उसके द्वारा किये गए प्रयास से, जिस तरह के छोटे से कार्य ने मुझे बहुत प्रभावित किया। मैं अपने घर पर मकड़ियों के काम को देखना शुरू कर दिया है कि बहुत हैरान था। एक बार, एक मकड़ी एक दीवार के शीर्ष पर पहुँचने के लिए एक घंटे के आसपास ले लिया और मैंने निर्दयतापूर्वक उसे नीचे गिरा दिया। मेरे लिए आश्चर्य करने वाली बात थी कि सेकंड के भीतर ही फिर से उसने अपना रास्ता बनाने शुरू कर दिया।

इस घटना ने मेरा नजरियाही बदल दिया था। मुझे महसूस हुआ रिजेक्ट या असफल होना कोई बड़ी बात नहीं है। दुनिया बुरा बरताब करे, तो खड़ा होना चाहिए और दुवारा फिर से काम शुरू करना चाहिए। अभी समय है जब लोग पसंद करेंगे और सराहना करेंगे। उस के लिए, आज के दिन से, मुझे लोगों के साथ मिलना, नयी चीजें

सीखना और नए दोस्त बनाना अच्छा लगता है। मुझे लगता है, अस्वीकृति या विफलता बस कुछ शब्द हैं जो हमें आगे जाने से रोकते हैं और इनको कभी भी बदला जा सकता है।







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मोटापे से निपटने के लिए झूलन-ढुलकन आसन.







झूलन-ढुलन आसन! आपने इस आसन का नाम कम ही सुना होगा। हालांकि बालपन में आपने यह आसन जरूर किया होगा। शरीर का आधार रीढ़ होता है। रीढ़ को मजबूत बनाने के लिए यह आसन बहुत अच्छा है। झूलन-लुढ़कन आसन को करने से रीढ़ की हड्डी और जोड़ पहले से ज्यादा लचकदार और मजबूत होते हैं।


झूलना-लुढ़कना आसन की विधि:-

(अ)
* सबसे पहले पीठ के बल सीधा लेट जाएं।
* अब दोनों पैरों को मोड़ते हुए वक्ष तक लाएं
* दोनों हाथों की अंगुलियों को आपस में फंसाकर घुटनों के पास पैरों को कसकर पकड़ें।
-यह प्रारंभिक स्थिति है।

(ब)
* अब शरीर को क्रमश: दाहिनी और बाईं ओर लुढ़काते हुए पैर के बगल के हिस्से को जमीन से स्पर्श कराएं।
* 5 से 10 बार यह अभ्यास करें।
* पूरे अभ्यास के समय श्वास-प्रश्वास को सामान्य रखें।

(स)
* नितम्बों को जमीन से थोड़ा ऊपर रखते हुए उकडूं बैठें।
* दोनों हाथों की अंगुलियों को आपस में फंसाकर घुटनों के ठीक नीचे पैरों को कसकर पकड़ें।
* संपूर्ण शरीर को मेरूदंड पर आगे‌-पीछे लुढ़काएं।
* अब आगे की ओर लुढ़कते समय पांवों पर बैठने की स्थिति में आने का प्रयत्न करें।
* 5 से 10 बार आगे-पीछे लुढ़कें।

फिर से (पुनश्च:) : इस आसन को करने के लिए लेट जाएं। दोनों पैरों को घुटनों से मोड़ लें। अब घुटनों को छाती की ओर ले जाएं और अपने हाथों से पैरों को घुटनों के पास से पकड़ लें। फिर श्वास भरें और आगे की ओर झूलते हुए श्वास छोड़ें। अब पीछे की ओर लुढ़कते हुए श्वास भरें। इस आसन को करने के दौरान सिर को बचाकर रखें। इस आसन को करते समय कोशिश करें कि आगे की ओर झूलते हुए आप पैरों के बल बैठ जाएं। इस प्रक्रिया को करने से पीठ के बल आगे-पीछे लुढ़कते-झूलते हुए रीढ़ के सभी जोड़ों का व्यायाम हो जाता।

सावधानी : इस आसन को करते समय रीढ़ को ज्यादा सुरक्षा देने के लिए मोटा कंबल बिछाएं। जिन लोगों को पहले से कमर या पीठ में दर्द की शिकायत हो उन्हें इस आसन से परहेज करना चाहिए।

आसन का लाभ :- यह आसन नियमित करने से पीठ, नितम्ब और कटि-प्रदेश की मालिश करता है और पीठ, कमर, नितंब की चर्बी को कम करता है।

आप संपर्क कर सकते हैं हमारे पते पर:

Name: Nishant Sharma

E-mail: nishantamrah@gmail.com

Mobile No.: 0753216566

Fb : https://www.facebook.com/nishantgraph


अगर आपका कोई सवाल है तो आप बेजिझक हो कर पूंछ सकते हैं।


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स्वस्थ रहने की 10 अच्छी आदतें. 10 tips for stay Healthy.


कोई भी एक व्यायाम रोज जरूर करें। इसके लिए रोजाना कम से कम आधा घंटा दें और व्यायाम के तरीके बदलते रहें, जैसे कभी एयरोबिक्स करें तो कभी सिर्फ तेज चलें। अगर किसी भी चीज के लिए वक्त नहीं निकाल पा रहे तो दफ्तर या घर की सीढ़ियां चढ़ने और तेज चलने का लक्ष्य रखें। कोशिश करें कि दफ्तर में भी आपको बहुत देर तक एक ही पोजीशन में न बैठा रहना पड़े।  




अच्छी तरह साबुन से धोएं। कहीं भी बाहर से घर आने के बाद, किसी बाहरी वस्तु को हाथ लगाने के बाद, खाना बनाने से पहले, खाने से पहले, खाने के बाद और बाथरूम का उपयोग करने के बाद हाथों को अच्छी तरह साबुन से धोएं। यदि आपके घर में कोई छोटा बच्चा है तब तो यह और भी जरूरी हो जाता है। उसे हाथ लगाने से पहले अपने हाथ अच्छे से जरूर धोएं।




 



बहुत ज्यादा तेल, मसालों से बने, बैक्ड तथा गरिष्ठ भोजन का उपयोग न करें। खाने को सही तापमान पर पकाएं और ज्यादा पकाकर सब्जियों आदि के पौष्टिक तत्व नष्ट न करें। साथ ही ओवन का प्रयोग करते समय तापमान का खास ध्यान रखें। भोज्य पदार्थों को हमेशा ढंककर रखें और ताजा भोजन खाएं। 
 


45 की उम्र के बाद अपना रूटीन चेकअप करवाते रहें और यदि डॉक्टर आपको कोई औषधि देता है तो उसे नियमित लें। प्रकृति के करीब रहने का समय जरूर निकालें। बच्चों के साथ खेलें, अपने पालतू जानवर के साथ दौड़ें और परिवार के साथ हल्के-फुल्के मनोरंजन का भी समय निकालें।    

 



मेडिटेशन, योगा या ध्यान का प्रयोग एकाग्रता बढ़ाने तथा तनाव से दूर रहने के लिए करें।  


अपने विश्राम करने या सोने के कमरे को साफ-सुथरा, हवादार और खुला-खुला रखें। चादरें, तकियों के गिलाफ तथा पर्दों को बदलती रहें तथा मैट्रेस या गद्दों को भी समय-समय पर धूप दिखाकर झटकारें।
 


खाना पकाने के लिए अनसैचुरेटेड वेजिटेबल ऑइल (जैसे सोयाबीन, सनफ्लॉवर, मक्का या ऑलिव ऑइल) के प्रयोग को प्राथमिकता दें। खाने में शकर तथा नमक दोनों की मात्रा का प्रयोग कम से कम करें। जंकफूड, सॉफ्ट ड्रिंक तथा 



आर्टिफिशियल शकर से बने ज्यूस आदि का उपयोग न करें। कोशिश करें कि रात का खाना आठ बजे तक हो और यह भोजन हल्का-फुल्का हो।
 


खाने में सलाद, दही, दूध, दलिया, हरी सब्जियों, साबुत दाल-अनाज आदि का प्रयोग अवश्य करें। कोशिश करें कि आपकी प्लेट में 'वैरायटी ऑफ फूड' शामिल हो। खाना पकाने तथा पीने के लिए साफ पानी का उपयोग करें। सब्जियों तथा फलों को अच्छी तरह धोकर प्रयोग में लाएं।
 



बहुत ज्यादा तेल, मसालों से बने, बैक्ड तथा गरिष्ठ भोजन का उपयोग न करें। खाने को सही तापमान पर पकाएं और ज्यादा पकाकर सब्जियों आदि के पौष्टिक तत्व नष्ट न करें। साथ ही ओवन का प्रयोग करते समय तापमान का खास ध्यान रखें। भोज्य पदार्थों को हमेशा ढंककर रखें और ताजा भोजन खाएं।
 


घर में सफाई पर खास ध्यान दें, विशेषकर रसोई तथा शौचालयों पर। पानी को कहीं भी इकट्ठा न होने दें। सिंक, वॉश बेसिन आदि जैसी जगहों पर नियमित रूप से सफाई करें तथा फिनाइल, फ्लोर क्लीनर आदि का उपयोग करती रहें। खाने की किसी भी वस्तु को खुला न छोड़ें। कच्चे और पके हुए खाने को अलग-अलग रखें। खाना पकाने तथा खाने के लिए उपयोग में आने वाले बर्तनों, फ्रिज, ओवन आदि को भी साफ रखें। कभी भी गीले बर्तनों को रैक में नहीं रखें, न ही बिना सूखे डिब्बों आदि के ढक्कन लगाकर रखें।   






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Name: Nishant Sharma

E-mail: nishantamrah@gmail.com

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अपनी अच्छाई की कमाई बढाने के तरीके.




1- किसी को अच्छी किताब पड़ने को दें. जब भी उसे पड़ेंगे, आपकी यद् आयेगी.
2- किसी असपताल में व्हील-चेयर भेंट करें. जब भी कोई उसका इतेमाल करेगा करेगा, आपको लाभ मिलेगा.
3- अस्पताल, स्कूल, कॉलेज या धर्मशाला बनबाने में सहयोग दें. जब भी कोई उनका इस्तेमाल करेगा, आपकी आय बढेगी.
४- सार्वजानिक स्थल पर पानी पिलाने, पानी की टंकी या मटके रखवाएं. दूसरों के इस्तेमाल पर आपको अच्छाई की कमाई होगी.
५- पेड़ लगाएं. जब भी कोई व्यक्ति या पशु उसकी छाया में बेठेगा या उसके फल खायेगा, आपको लाभ मिलेगा.

परिस्तिथि बदले तो मन भी बदलें




शिष्य ने गुरु से कहा- गुरुदेव!एक व्यक्ति ने आश्रम के लिए भेंट की है.
गुरु ने कहा- अच्छा हुआ. दूध पीने को मिलेगा.
एक सप्ताह बाद आकार शिष्य ने गुरु ने कहा-
गुरूजी! जिस व्यक्ति ने गाय दी थी, वह अपनी गाय वापस ले गया.
गुरु ने कहा- अच्छा हुआ! गोबर उठाने के झंझट से मुक्ति मिली.
जीवन में भी इसी बात तो समझाना जरुरी है. ऐसा व्यक्ति जो हर हाल में राजी हो उसे कोई दुखी नहीं कर सकता.
परिस्तिथि बदले, तो अपनी मानसिकता बदल लो.
बस दुःख, सुख में बदल जायेगा. क्योंकि सुख-दुःख आखिर दोनों मन के ही समीकरण हैं.